बिहार के कटिहार जिले की सीमा से लगे पूर्णियां जिले में कोसी और गंगा के संगम वाले कुर्सेला घाट पर विशाल मगरमच्छों का एक कुनबा इन दिनों लोगों के लिए कौतूहल और भय का कारण बना हुआ है।लगभग छह दशक पूर्व तक अविभाजित बिहार के पूर्णियां जिला के कोसी नदी का कछार वाला इलाका जंगल, हिंसक वन्य प्राणियों और जल जीवों के लिए मशहूर था लेकिन बढ़ती आबादी, पर्यावरण में आए बदलाव, वृक्षों की अंधाधुंध कटाई और कोसी परियोजना के कार्यान्वयन के कारण इस इलाके में वन्य प्राणी तथा जल जीव पूरी तरह लुप्त या दुर्लभ हो चुके हैं, लेकिन लम्बे अर्से बाद एक बार फिर कुर्सेला घाट पर लगभग तीन मीटर लम्बे और डेढ़ मीटर चौडे़ तीन बड़े मगरमच्छ इन दिनों धूप सेंकते नजर आ रहे हैं। उनके साथ में शिशु मगरमच्छ भी पानी और रेत पर अठखेलियां करते रहते हैं।कुर्सेला घाट पर नित्य स्नान करने वाले लोग इन मगरमच्छों से भयभीत है। आगामी माघी पूर्णिमा के दिन यहां लगने वाले मेले के अवसर पर बड़ी संख्या में संगम में डूबकी लगाने वालों के लिए यह खतरे का सबब बना हुआ है। इसके साथ ही इन मगरमच्छों को भी लोगों से खतरा है।
गौरतलब है कि कटिहार जिले में कुर्सेला से भौआ तक कोसी नदी के कछार के काश पटेर के जंगलों में एक समय गेंडा, बाघ, चीता, मगरमच्छ जैसे वन्य प्राणी बहुतायत में पाए जाते थे। भारत में अब तक का सबसे बड़ा रॉयल बंगाल टाइगर कटिहार जिला के गेड़ाबाड़ी के जंगलों में मिला था जिसका खाल आज भी कोलकाता संग्रहालय में रखी है।