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कोसी प्रमंडल (बिहार) से प्रकाशित इस प्रथम दैनिक ई. अखबार में आपका स्वागत है,भारत एवं विश्व भर में फैले यहाँ के तमाम लोगों के लिए यहाँ की सूचना का एक सशक्त माध्यम हम बनें, यही प्रयास है हमारा, आपका सहयोग आपेक्षित है... - सम्पादक

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शनिवार

साहित्यिक विधाओं का विपुल संसार है ‘साँवली’ - डा. उत्तिमा केशरी

हिन्दी की साहित्यक लघु पत्रिकाओं में ‘सांवली’ अपनी प्रतिबद्धता, वैचारिकता और सर्जनात्मक प्रभावों से जानी जाती है। महज 3 वर्ष: 6 अंकांे के बदौलत बिना किसी फतवेबाजी और विमर्श के यह पत्रिका पाठकों के मध्य अपनी जगह बहुत तेजी से बना रही है। यह पत्रिका समर्थ रचनाकारों के अतिरिक्त अपने अंचल के साथ सुदूर नए लेखकों को स्पेस दे रही है। इस पत्रिका का प्रधान संपादक जवाहर किशोर प्रसाद बेहद इमानदारी और गहरी संलग्नता के साथ अपने संपादक त्रेय के माध्यम से संपादन कर रहे हैं यह प्रधान संपादक के कुशल नेतृत्व का परिचय है।
    इस अंक में कहानियाँ कई हैं, उनमें - डा. सरला अग्रवाल, रमेश कुमार रमण, डा. सुवंश ठाकुर ‘अकेला’, सूर्यकांत निराला, कुमार शर्मा ‘अनिल’ अपनी संवेदनात्मक उपस्थिति दर्ज कराती है। आलेख स्तंभ में ‘मंदार-दर्शन’ , पद्मा धर्म-पत्नी थी, कोसी-शोध साहित्य संदर्भ, आधुनिक हिन्दी लेखकन के क्रमशः लेखन- संजीव रंजन, अनन्त, देवेन्द्र कुमार देवेश व अनिरूद्ध सिन्हा की उपस्थिति पाठकों को अच्छी लगेगी। कविताएँ, गीत, गज़ल की उपस्थिति भी अच्छी है। आशा विश्वास, स्नेहलता, डा. लीला रानी ‘शबनम’, डा. भूपेन्द्र नारायण यादव ‘मधेपुरी’, वासुदेव प्रसाद विधाता की कविताएँ और गज़लें बिम्बों की अन्तश्चेतनाओं की पूरी परत खोलने में पाठकों को साथ कर लेती हैं। उत्तम केशरी की अंगिका कविता की शुरूआत अच्छी है। अंचल की अन्य भाषाओं पर भी कविताएँ आनी चाहि; जैसे सूर्यापुरी, बंगला, मैथिली और उर्दू आदि।
    लघु कथाएँ, हास्य-व्यंग्य, आध्यात्मिक आलेख, बालदीप, दूर-दर्शन, सिनेमा स्तंभ की रचनाएँ भी पाठकों को आकर्षित करने में सक्षम है। इस अंक का महत्वपूर्ण पाठ- प्रबुद्ध लेखक इन्दुशेखर की है जिन्होंने चन्द्र किशोर जायसवाल के उपन्यास ‘पलटनिया’ पर अपनी पूरी गंभीरता और पारदर्शिता से विमर्श प्रस्तुत किया है।... सांवली का आवरण भी ‘सांवली’ की तरह मनमोहक है।
संपादकः डा. सुवंश ठाकुर ‘अकेला’, सिपाही टोला, चूनापुर रोड, पूर्णिया-854301. मोबाइल- 9973264550./ 9931465695.
 

सोमवार

’कोसी की नई जमीन' बनने को तैयार !


'कोसी की नई जमीन' का कविता खंड अब मुद्रण के लिए तैयार है। इसमें कोसी अंचल के 45 कवियों की कविताऍं संगृहीत हैं।
कोसी अंचल के युवा कवियों के समक्ष अपने अंचल के पूर्वज लेखकों की रचनात्मक विरासत और प्रतिमान हैं, वहीं दूसरी ओर आंचलिकता की विशिष्ट साहित्यधारा की जन्मभूमि होने के नाते विश्व स्तर पर प्रतिष्ठित उनकि लोकधर्मिता और कोसी की त्रासदी की प्रेरणा और प्रभाव है- वरिष्ट साहित्यकार विश्वनाथ प्रसाद तिवारी का यह मानना है कि आज के बाजारवाद लोकतंत्र में मिटते आदमी और चालाक सत्ता के शोषक रूप की तस्वीर भी इनमें प्रयाप्त है!
 संग्रह में शामिल कुल 45 कवियों के नाम इस प्रकार हैं -
कटिहार (13)- अनिमेष गौतम (बोकारो), आकाश कुमार (दिल्‍ली), कल्लोल चक्रवर्ती (दिल्‍ली), देवेन्द्र कुमार देवेश (दिल्‍ली), राकेश रोहित (कोलकाता), विभुराज चौधरी (दिल्‍ली), शेखर सुमन (बंगलूरु), संजीव कुमार सिंह, संजीव ठाकुर (गाजियाबाद), स्वर्णलता ‘विश्वफूल’, स्मिता झा (चाईंबासा), हरे राम सिंह, सुरेन्‍द्र कुमार सुपौल (12)- अखिल आनंद (सहरसा), अनुप्रिया (दिल्‍ली), कनुप्रिया (दिल्‍ली), किसलय ठाकुर (मुंबई), कुमार सौरभ (दिल्‍ली), नीरज कुमार (दिल्‍ली), पंकज चौधरी (मेरठ), मिथिलेश कुमार राय (सहरसा), रंजीत (रॉंची), रमण कुमार सिंह (दिल्‍ली), श्याम चैतन्य (गुड़गॉंव), राजेश चंद्र (दिल्‍ली) मधेपुरा (7)- अनुपम कुमार (दिल्‍ली), अमरदीप (पटना), अरविन्द श्रीवास्तव, उल्लास मुखर्जी, कृष्णमोहन झा (सिलचर), राजर्षि अरुण (शिमला), संजय कुमार सिंह (किशनगंज) पूर्णिया (7)- अरुण प्रकाश, गिरीन्द्रनाथ झा (कानपुर), रणविजय सिंह सत्यकेतु (इलाहाबाद), श्रीधर करुणानिधि (पटना), विनीत उत्‍पल (दिल्‍ली), अशोक कुमार 'आलोक', सुरेन्‍द्र कुमार 'सुमन' सहरसा (3)- अरुणाभ सौरभ (गुवाहाटी), आलोक रंजन (दिल्‍ली), शुभेश कर्ण (पटना)
अररिया (3)- चेतना वर्मा (जमशेदपुर), ठाकुर शंकर कुमार, मिथिलेश आदित्‍य
कोसी की नई जमीन: कविता खंड, संपादक: देवेन्‍द्र कुमार देवेश ( मोबाइल- 09868456153.), प्रकाशक - यश पब्‍लिकेशंस, नई दिल्‍ली। 

बुधवार

खुद की पीड़ा बांटने का प्रयास है ‘एक थी गीता’

‘एक थी गीता’ जवाहर किशोर प्रसाद की सरल-सहज बोलचाल की भाषा में रचितएक अत्यन्त संवेदनात्मक लघु-उपन्यास है। घनीभूत मानवीय संवेदना और करुणा के भाव से सिंचित यह उपन्यास रिश्तों की आत्मीयता को दर्शाता है। खास बात यह भी है कि इस रचना के कथा-क्रम में नायक की उपस्थिति गहरे रोमांचित करता है। ऐसा लगता है कि लेखक के पास रिश्तों के भावनात्मक चढ़ाव-उतार की समझ बूझ का एक समृद्ध अतीत है। शायद तभी नैसर्गिक प्रेम के रंगों को विरह-मिलन की कूची से कई प्रकार की प्रेम कहानियों की तस्वीरें पेश करने में इन्हें को असुविधा नहीें होती। अपने अनुभव, अनुभूतियों एवं कल्पनाओं की जीवंत रेखाओं से रचे कथानक में जो प्रतिविम्ब बनता है, वह बिल्कुल अपना-सा लगता है।
                                     - रामबहादुर कुमर (प्राचार्य) भागलपुर।

‘एक थी गीता’ सत्य घटना पर आधारित समाज की सच्ची कहानी है, जहां कथा-नायक यदा-कदा कहानी में उपस्थित होकर अपने दार्शनिक विचारों को संप्रेषित करता है, किन्तु बार-बार वह आकर कहानी से बाहर हो जाता है, स्वयं टिक नहीं पाता है, जिससे यह पता चलता है कि वह पात्रों के बीच रहकर अपने दुःखों में शामिल होना तो चाहता है किन्तु असह्य पीड़ा को देख नहीं सकने के कारण अपने दार्शनिक पुट छोड़कर प्लाट से बाहर हो जाता है।
    ‘एक थी गीता’  की कथा-वस्तु हमारे समाज की एक ऐसी अनकही कहानी है जो रोज-रोज घटती है हमारे सामने, किन्तु हम उन्हें अपनी जुबान पर लाने से हमेशा ही कतराते हैं।
                                                     - अशोक कुमार ‘आलोक’
                             संपादक- 'अर्य संदेश', मोबाइल- 9709496944.
लेखक- जवाहर किशोर प्रसाद
संपर्कः माधुरी प्रकाशन, सिपाही टोला, चूनापुर रोड, पूणिया - 854301
मोबाइल- 9905217237/9973264550.

   

अन्तःप्रेरणा की अभिव्यक्ति है कविता संग्रह ‘किसलय’

साहित्य में अच्छी संभावनाओं का नाम है डा. सुवंश ठाकुर ‘अकेला’ है। पचास कविताओं का संग्रह ‘किसलय’ नाम को सार्थक करता है। यह महज संयोग नहीं कि वाणी-वन्दना से प्रारंभ जीवन के सत्य जो साहित्य का भी सत्य है श्मशान पर पड़ाव डालती है कविता। बीच के सफर में शिव भी है, सुन्दर भी है।
    कविताओं की भाषा सरल, भाव-गंभीर है।
    श्री अकेला के ‘दो शब्द’ ने मुझे अधिक प्रभाविता किया है कि ये अपनी हांकने वाले कवि नहीं हैं। निन्दा, स्तुति, पाठकों के विवेक पर छोड़कर ये केवल कविताएं लिखते हैं। ‘किसलय’ के बारे में किसलय की ही ये दो पंक्तियां
उद्धृत कर मैं आश्वस्त हूँ कि इस छोटे-से शहर पूर्णिया का यह कवि नामवर होगा।
     ‘किसलय की शोभा न्यारी है,
    हर मनुज मात्र को प्यारी है।’’

 उम्र में ‘अकेला’ से बड़ा हूँ। सो, यशस्वी होने का आशीर्वाद देता हूँ
                                                    - भोलानाथ आलोक, पूर्णिया

पुस्तक से कविता की बानगी-
         सुकरात सरीखा जहर मिले
        शूली ईसा सा पा जायें
        हिरण्यकशिपु सा पिता मिले
        जाति मिले रैदास की         
        घोर यातना मीरा जैसी
        हो जाऊँ कबीरा सा फक्कड़

        ......
        .......
लेखक- डा. सुवंश ठाकुर ‘अकेला’
संपर्कः माधुरी प्रकाशन, सिपाही टोला, चूनापुर रोड, पूणिया - 854301
मोबाइल- 9905217237 / 9973264550.

शुक्रवार

‘कोशी तीर के आलोक पुरूष’ एक खोजपूर्ण साहित्यक अवदान - सुधाकर


‘कोशी तीर के आलोक पुरूष’ कोशी के संवेदनशील, बहुचर्चित तथा स्थापित साहित्यकार, कई गवेष्णात्मक साहित्य के रचयिता एवं साहित्य के पुरोधा श्री हरिशंकर श्रीवास्तव ‘शलभ’ का सद्यः प्रकाशित ग्रन्थ है। इसके पूर्व ‘मधेपुरा के स्वाधीनता आन्दोलन का इतिहास, ‘शैवअवधारणा और सिंहेश्वर’, ‘मंत्रद्रष्टा ऋष्यशृंग’ तथा ‘कोशी अंचल की अनमोल धरोहर’ एवं ‘अंग लिपि का इतिहास’ जैसे खोजपूर्ण साहित्य अवदान, शलभजी साहित्य’जगत को दे चुके हैं। इन ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक ग्रन्थों के पश्चात ‘कोशी तीर के आलोक पुरूष ’ नामक यह अनमोल ग्रन्थ, शलभजी का समीक्षार्थ सामने है, जिसमें संत शिरोमणि परमहंस लक्ष्मीनाथ गोस्वामी, संत कवि जाॅन क्रिश्चन, पुलकित लाल दास ‘मधुर’, बलेन्द्र नारायण ठाकुर ‘विप्लव’, मो. कुदरतुल्लाह कालमी, कमलेश्वरी प्रसाद मंडल तथा कार्तिक प्र0 सिंह के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर गवेष्णात्मक एवं खोजपूर्ण प्रकाश डाला गया है।
    विद्वान लेखक ने अपने ‘दो शब्द’ में लिखा है कि ‘इसके अलावा भी इस क्षेत्र में ऐसे कई पुरूष-रत्न हुए हैं, जिन्हें अब तक प्रकाश में नहीं लाया जा सका है। कोशी अंचल के इतिहास एवं सांस्कृति के अनुसंधाता एवं रचनाकार के लिए यह अपराध बोध जैसा लगता है। मैंने तद्विषयक अपने पूर्व ग्रन्थ, ‘कोशी अंचल की अनमोल धरोहरें तथा प्रस्तुत ग्रन्थ ‘कोशी तीर के आलोक पुरूष’ में इससे उबरने का लघु प्रयास भर किया है। मेरा यह प्रयास कितना सफल है, सुधी पाठक ही निर्णय ले सकते हैं। इस परिपेक्ष्य में मेरा यह मानना है कि ‘कोशी तीर के आलोक पुरूष’ नामक यह ग्रन्थ ऐसे आलोक पुरूष को आलोकित तथा प्रोद्भाषित करने में सक्षम है, जिन्हें यह जमाना भुलाने की चेष्टा कर रहा है।
    आलोच्य ग्रन्थ बहुत ही ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक रत्नों को उजागर करने वाला है। तदर्थ , साहित्य-जगत् में ऐसे गवेष्णात्मक तथा ऐतिहासिक ग्रन्थ का अभिनन्दन होना चाहिए।
पुस्तक की छपाई तथा बंधाई बहुत आकर्षक तथा नयनाभिराम है।  
लेखकः  श्री हरिशंकर श्रीवास्तव ‘शलभ’, अशेष मार्ग, लक्ष्मीपुर मुहल्ला, मधेपुरा (बिहार),पिन-852113
प्रकाशक- समीक्षा प्रकाशन, जे.के. मार्केट, छोटी कल्याणी, मुजफ्फरपुर (बिहार) मूल्य- 150/-रूपये
समीक्षकः सुबोध कुमार ‘सुधाकर’ , सम्पादक, ‘क्षणदा’ (त्रैमासिक)
    प्रभा प्रकाशन, त्रिवेणीगंज (सुपौल) बिहार, पिन-852139

रविवार

कोसी तीर के आलोक पुरुषों का बेशकीमती स्तवक - कोसी तीर के आलोक पुरुष !


कोसी क्षेत्र में ऐसे अनेक महापुरुषों ने जन्म लिया, जिन्होंने राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी गरिमामयी पहचान बनायी। इसमें स्वनामधन्य रासबिहारी लाल मंडल, शिवनन्दन प्रसाद मंडल, भूपेन्द्र नारायण मंडल, विन्ध्येश्वरी प्रसाद मंडल आदि के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर अनेक शोधात्मक कार्य हुए हैं। प्रत्येक वर्ष उनकी जयन्तियाँ भी ससमारोह मनायी जाती है। इनके अलावे भी इस क्षेत्र में ऐसे कई पुरुष-रत्न हुए हैं- जिन्हें अबतक प्रकाश में नहीं लाया जा सका है। कोसी क्षेत्र के अनुसंधाता एवं रचनाकार के लिए इस ग्रन्थ में संत शिरोमणि परमहंस लक्ष्मीनाथ गोस्वामी, कोसी तीर के विदेशी मूल के कवि संत जान क्रिश्चन, कोसी तीर के महान सांस्कृतिक पुरोधा पुलकित लाल दास ‘मधुर’, कोसी तीर के ‘दिनकर’ बलेन्द्र नारायण ठाकुर ‘विप्लव’, कोसी तीर के खुदाई खिदमतगार मोहम्मद कुदरतुल्लाह काजमी, कोसी तीर के ‘गांधी’ कमलेश्वरी प्रसाद मंडल और कोसी तीर के ‘जयप्रकाश’ कार्त्तिक प्रसाद सिंह जैसे आलोक -पुरुषों के योगदान का गवेष्णात्मक अध्याय के साथ समग्र मूल्यांकन किया गया है। लेखक श्री हरिशंकर श्रीवास्तव ‘शलभ’ का मानना है कि इन महान विभूतियों की असीम आलोक-गाथा से युगों तक यह क्षेत्र प्रभासमान होता रहेगा।
    यह पुस्तक कोसी क्षेत्र से जुड़े सभी शोधार्थी, रचनाकर्मी एवं सचेतन नागरिकों के लिए पठनीय एवं संग्रहनीय है।
पुस्तकः कोसी तीर के आलोक पुरुष / मूल्य- 150/ =
प्रकाशक- समीक्षा प्रकाशन, दिल्ली- 92.
प्राप्ति स्थान- कला कुटीर, अशेष मार्ग, मधेपुरा- 852113. (बिहार)
मोबाइल संपर्क - 9431080862. 9472495048.