विचार व्यक्त करते- डा. रामलखन सिंह यादव, अपर जिला सत्र न्यायाधीश, मधेपुरा |
विश्वकवि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने देश और विदेश के सारे साहित्य दर्शन संस्कृति आदि को आत्मसात कर अपने भीतर समेट लिए थे। साहित्य की शायद ही कोई ऐसी शाखा है जिसमें उनकी रचना न हो। ये उदगार कौशिकी क्षेत्र हिन्दी साहित्य सम्मेलन, मधेपुरा के अम्बिका सभागार में गीतांजलि के दार्शनिक एवं मानवीय पक्ष को दर्शाते हुए मुख्य अतिथि के रूप में अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश डा. रामलखन सिंह यादव ने व्यक्त किया। डा. यादव ने यह भी कहा कि विश्व के ऐसे एकमात्र कवि हैं जिसकी दो रचनाएं दो राष्ट्रों के राष्ट्रगान हैं । वह नोबेल पुरस्कार पाने वाले एशिया महादेश के प्रथम व्यक्ति थे । इसके पूर्व समारोह के अध्यक्ष हरिशंकर श्रीवास्तव ‘शलभ’ ने विषय प्रवेश करते हुए कहा कि टैगोर बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूंकने वाले युगद्रष्टा थे। मनुष्य और ईश्वर के बीच जो चिरस्थायी संबन्ध है, वह अलग-अलग रूपों में रवीन्द्र की रचनाओं में उभर कर सामने आया है। उनकी गीतांजलि विश्व साहित्य की एक अनमोल धरोहर है तथा रवीन्द्र संगीत बंगला संगीत का अभिन्न अंग है। विशेष अतिथि के रूप में डा. देवाशीष बोस ने विस्तार से महाकवि के पारिवारिक परिवेश, व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला, सम्मेलन के सचिव डा. भूपेन्द्र नारायण यादव ‘मधेपुरी’ ने कहा कि इस महान शिक्षा शास्त्री ने वैदिक युग के नालंदा और विक्रमशिला के समान शांति निकेतन की स्थापना की । प्रकृति के अनन्य पुजारी कवींद्र रवीन्द्र ने गांधी जी को महात्मा का विशेषण दिया। इसके अतिरिक्त डा. विनय कुमार चैधरी, दशरथ प्रसाद सिंह , तुलसी पब्लिक स्कूल के निदेशक श्यामल कुमार आदि ने अपने-अपने विचार व्यक्त किये।
कार्यक्रम का आरंभ श्रीमती मंजू घोष के रवीन्द्र संगीत से हुआ। कार्यक्रम के द्वितीय सत्र में सुकवि परमेश्वरी प्रसाद मंडल ‘दिवाकर’ की स्मृति में आयोजित काव्य गोष्ठी का संचालन दशरथ प्रसाद सिंह ‘कुलिश’ ने किया डा. राम लखन सिंह यादव, डा. भूपेन्द्र मधेपुरी, डा. आलोक कुमार, डा. विनय कुमार चैधरी, संतोष सिन्हा, उल्लास मुखर्जी, श्यामल कुमार, मयंक जी, मशाल जी, प्रो. शचीन्द्र आदि कवियों ने भाग लिया। डा. आलोक कुमार ने धन्यवाद ज्ञापन किया।