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गुरुवार

दिल्ली के मंच पर मधेपुरा की गूंज


ई दिल्ली. कोसी की मिट्टी की ताकत सिर्फ बाढ़ लाने और विभीषिका तक सीमित नहीं है बल्कि इसकी मिट्टी में रचनात्मकता भी है. पिछले दिनों दिल्ली सरकार द्वारा आयोजित गणतंत्र दिवस काव्य उत्सव में कोसी की माटी के शब्द राष्ट्रीय राजधानी में गूंजे. मधेपुरा के गाँव आनंदपुरा में पले-बढे युवा कवि विनीत उत्पल राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के उस मंच से अपनी कविताओं का पाठ किया, जिस मंच पर इनके अलावा मैथिली और भोजपुरी के करीब बीस कवि मौजूद थे. उन्होंने काव्य उत्सव के खुले मंच से 'बेटी' नामक कविता पेश की जो कोसी में आई विभीषिका और मां को लेकर था.
मैथिली और भोजपुरी में काव्य उत्सव का आयोजन दिल्ली सरकार की मैथिली-भोजपुरी अकादेमी ने किया था. दिल्ली के मंडी हाउस स्थित श्रीराम भारतीय कला केंद्र में आयोजित इस काव्य उत्सव का उद्घाटन दिल्ली सरकार में भाषा, महिला और बल विकास मंत्री डा. किरण वालिया ने किया था. मैथिली में कविता पाठ करने वालों में विनीत उत्पल के अलावा मानवर्धन कंठ, अग्निपुष्प, कुमार राधारमण, शेफालिका वर्मा, रामलोचन ठाकुर, विवेकानंद ठाकुर, और रवींद्र लाल दास थे, वहीं भोजपुरी में अनिल ओझा 'नीरद', कमलेश राय, परिचय दास, अविनाश, रचना योगेश, रवींद्र श्रीवास्तव जुगानी, मनोज भावुक, तारकेश्वर मिश्र राही, ज्ञानेंद्र कुमार सिंह, रमाशंकर श्रीवास्तव ने अपनी कविता पेश की.
 विनीत उत्पल का जन्म पूर्णिया जिले के सुखसेना ग्राम में हुआ है और उनका पैत्रिक ग्राम मधेपुरा के उदाकिशुनगंज प्रखंड के आनंदपुरा ग्राम है. उनका शुरूआती बचपन सैनिक स्कूल, तिलैया में बीता. उनकी पढाई-लिखाई मुंगेर जिले के तारापुर और रणग्राम में हुई है. उन्होंने भागलपुर स्थित मारवाड़ी कालेज में पढाई की है और तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री हासिल की है. बाद में उन्होंने दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया से जनसंचार और भारतीय विद्या भवन से अंग्रेजी में पत्रकारिता की डिग्री ली. उन्होंने गुरु जम्भेश्वर विश्वविद्यालय से जनसंचार में मास्टर की डिग्री भी हासिल की है. हिंदी, अंग्रेजी और मैथिली में विपुल लेखन करने वाले विनीत की एक मैथिली कविता संग्रह 'हम पुछैत छी'' दिल्ली से प्रकाशित हुई है. उन्होंने साहित्य अकादमी से पुरस्कृत वरिष्ठ साहित्यकार उदयप्रकाश की कहानी मोहनदास का मैथिली अनुवाद भी किया है. विनीत उत्पल मारवाड़ी कालेज, भागलपुर के गणित विभाग के पूर्व अध्यक्ष और गणितज्ञ डा. वेदानन्द झा के सुपुत्र हैं.

मंगलवार

सहरसा में बाल श्रमिक उन्मूलन एवं विभिन्न श्रम अधिनियमों का एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित


हरसा। सहायक श्रमायुक्त कार्यालय के पार्श्व में आयोजित बाल श्रमिक उन्मूलन एवं विभिन्न श्रम अधिनियमों का एक दिवसीय कार्यशाला की अध्यक्षता कोसी अंचल के वरिष्ठ साहित्यकार हरिशंकर श्रीवास्तव ‘शलभ’ ने की कार्यक्रम में सहरसा जिले के प्रखण्ड प्रमुख एवं मुखिया बहुलांश में उपस्थित थे। कार्यक्रम का आरंभ करते हुए डा. अरविन्द श्रीवास्तव ने कवि राजेश जोशी की कविता ‘बच्चे काम पर जा रहे हैं’ शीर्षक से की उन्होंने कहा कि बच्चों का सुबह होतेे ही काम पर जाना किसी भी राष्ट्र का पतनावस्था की ओर ले जाने का द्योतक है उन्हें खेलने, तितलियों के साथ दौड़ने तथा पाठशाला व मदरसों में पढ़ने का सुनहरा अवसर प्रदान किया जाय जिससे वे राष्ट्र का कर्णधार बन सकें।
    समारोह में श्रमप्रवर्तन पदाधिकारी साीता राम मंडल, श्यामल किशोर सिंह, लक्ष्मी प्रसाद, प्रफुल्ल कूमार दास एवं पूनम लता सिन्हा ने बाल श्रम उन्मूलन कानून की व्याख्या करते हुए उपस्थित प्रमुख एवं मुखिया से अपेक्षित सहयोग करने की अपील की । जिला मुखिया संध के अध्यक्ष डा. प्राण मोहन सिंह, मुखिया गजेन्द्र नारायण यादव, मुखिया जयशंकर जी ‘पप्पु’, मुखिया राजेश कुमार ‘रजनीश’ ने  बाल श्रम उन्मूलन पर अपने-अपने विचार रखे। अधिवक्ता श्री जैन ने बाल श्रम पर संवैधानिक प्रावधानों की जानकारी दी। बचपन बचाओ आन्दोलन के निदेशक घूरन महतो एवं सामाजिक कार्यकर्ता संजीव कुमार सिंह ने इस क्षेत्र में हुई उपलब्धि का विवरण प्रस्तुत किया। अध्यक्ष ने सभी उपस्थित श्रोताओं से अपील की कि जिस जलपान गृह अथवा होटल में बाल श्रमिक पाये जाय वहाँ जलपान अथवा भोजन न करेने का संकल्प लें तथा उस संस्था में उपस्थित बाल मजदूरों की सूचना संवद्ध अधिकारियों को त्वरित दें। सहायक श्रमायुक्त डा. आनन्द ने धन्यवाद ज्ञापन कर कार्यशाला का समापन किया।

गुरुवार

भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नई जान फूकने वाले युगद्रष्टा थे टैगोर

विचार व्यक्त करते- डा. रामलखन सिंह यादव, अपर जिला सत्र न्यायाधीश, मधेपुरा
विश्वकवि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने देश और विदेश के सारे साहित्य दर्शन संस्कृति आदि को आत्मसात कर अपने भीतर समेट लिए थे। साहित्य की शायद ही कोई ऐसी शाखा है जिसमें उनकी रचना न हो। ये उदगार कौशिकी क्षेत्र हिन्दी साहित्य सम्मेलन, मधेपुरा के अम्बिका सभागार में गीतांजलि के दार्शनिक एवं मानवीय पक्ष को दर्शाते हुए मुख्य अतिथि के रूप में अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश डा. रामलखन सिंह यादव ने व्यक्त किया। डा. यादव ने यह भी कहा कि विश्व के ऐसे एकमात्र कवि हैं जिसकी दो रचनाएं दो राष्ट्रों के राष्ट्रगान हैं । वह नोबेल पुरस्कार पाने वाले एशिया महादेश के प्रथम व्यक्ति थे । इसके पूर्व समारोह के अध्यक्ष हरिशंकर श्रीवास्तव ‘शलभ’ ने विषय प्रवेश करते हुए कहा कि टैगोर बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूंकने वाले युगद्रष्टा थे। मनुष्य और ईश्वर के बीच जो चिरस्थायी संबन्ध है, वह अलग-अलग रूपों में रवीन्द्र की रचनाओं में उभर कर सामने आया है। उनकी गीतांजलि विश्व साहित्य की एक अनमोल धरोहर है तथा रवीन्द्र संगीत बंगला संगीत का अभिन्न अंग है। विशेष अतिथि के रूप में डा. देवाशीष बोस ने विस्तार से महाकवि के पारिवारिक परिवेश, व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला, सम्मेलन के सचिव डा. भूपेन्द्र नारायण यादव ‘मधेपुरी’ ने कहा कि इस महान शिक्षा शास्त्री ने वैदिक युग के नालंदा और विक्रमशिला के समान शांति निकेतन की स्थापना की । प्रकृति के अनन्य पुजारी कवींद्र रवीन्द्र ने गांधी जी को महात्मा का विशेषण दिया। इसके अतिरिक्त डा. विनय कुमार चैधरी, दशरथ प्रसाद सिंह , तुलसी पब्लिक स्कूल के निदेशक श्यामल कुमार आदि ने अपने-अपने विचार व्यक्त किये। 
  कार्यक्रम का आरंभ श्रीमती मंजू घोष के रवीन्द्र संगीत से हुआ। कार्यक्रम के द्वितीय सत्र में सुकवि परमेश्वरी प्रसाद मंडल ‘दिवाकर’ की स्मृति में आयोजित काव्य गोष्ठी का संचालन दशरथ प्रसाद सिंह ‘कुलिश’ ने किया डा. राम लखन सिंह यादव, डा. भूपेन्द्र मधेपुरी, डा. आलोक कुमार, डा. विनय कुमार चैधरी, संतोष सिन्हा, उल्लास मुखर्जी, श्यामल कुमार, मयंक जी, मशाल जी, प्रो. शचीन्द्र आदि कवियों ने भाग लिया। डा. आलोक कुमार ने धन्यवाद ज्ञापन किया। 

शनिवार

मैथिली विश्व की सर्वाधिक वैज्ञानिक भाषा। साहित्य अकादेमी के आयोजन में टूटी कुर्सियाँ - चली कुर्सियाँ! प्रथम दिवस का आयोजन संपन्न।

मिथिला के साहित्यिक एवं सांस्कृतिक उत्कर्ष में संत कवियों के अवदान विषय पर साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली द्वारा समारोह एम.एल.टी. कालेज सहरसा के परिसर में (10-11 जून 2011.) आयोजित किया गया। आयोजन के प्रथम दिन उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता मैथिली के चर्चित साहित्यकार डा. मायानंद मिश्र ने की। उन्होंने मैथिली भाषा को विश्व की सबसे वैज्ञानिक भाषा का दर्जा दिया। कार्यक्रम का  उद्घाटन बीएन मंडल विश्वविधालय के कुलपति डा. अरुण कुमार की अनुपस्थिति में सहरसा कालेज के प्राचार्य डा. राजीव कुमार ने किया। इस अवसर पर साहित्य अकादेमी के मैथिली प्रभाग के संयोजक डा. विद्यानाथ झा विदित ने अपने भाषण में साहित्य अकादेमी के मैथिली प्रभाग के क्रिया-कलाप तथा मैथिली साहित्यकारों के लिए किये जा रहे अनेक कार्यक्रमों की घोषणा की। उन्होंने कहा कि - हिमालय भारत का सर है तो मिथिला आँख है। उन्होंने इस आयोजन को मिथिला-मैथिली की एकता और समरसता को समर्पित बताया।साहित्य अकादेमी के विशेष कार्यक्रम पदाधिकारी जे. पोन्नुदुरै ने उपस्थित श्रोताओं एवं साहित्यकारों का अंग्रेजी में स्वागत किया। प्रथम सत्र की अध्यक्षता बी.एन. मंडल विश्वविधालय, मधेपुरा के अंग्रेजी विभागाध्यक्ष डा. ललितेश मिश्र ने की। इस अवसर पर संतशिरोमणी लक्ष्मीनाथ गोस्वामी विषयक आलेख पाठ करते हुए डा. रामचैतन्य धीरज, डा. तेजनारायण शाह, डा. हरिवंश झा एवं डा. रंजीत सिंह ने उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला। इनके साथ ही डा. रवीन्द्रनाथ चैधरी इस संत की जीवन यात्रा को नक्शे पर दिखलाते हुए इनकी कृति पर विशेष प्रकाश डाला।
     द्वितीय एवं तृतीय सत्र संयुक्त रूप से संपादित किया गया। द्वितीय सत्र में भारती के आध्यात्मिक उत्कर्ष एवं तृतीय सत्र में लोकदेव कारू खिरहरि पर विशेष चर्चा हुई । द्वितीय सत्र की अध्यक्षता डा. भारती झा तथा तृतीय सत्र की अध्यक्षता डा. राजाराम शास्त्री ने की। द्वितीय सत्र में डा. लालपरी देवी, डा. भारती झा एवं डा. पुष्पम नारायण तथा तृतीय सत्र में डा. शिवनारायण यादव एवं डा. रामनरेश सिंह ने गवेष्णात्मक आलेख पाठ किये।
कार्यक्रम इस रूप में भी स्मरणीय रहा कि कमजोर कुर्सियाँ रहने की वजह से भारी शरीर वाले कई श्रोता व प्राध्यापकों का वजन यह नहीं सह सकी फलस्वरूप वे गिरे और कुर्सियाँ टूटी। ऐसा कई बार हुआ। साथ ही स्तरीय आलेख नहीं रहने की शिकायत सुनकर एक प्राध्यापक ने सभा वहिष्कार करने की चेष्टा की, हल्ला बोला और अध्यक्ष के विरूद्ध भड़ास निकाला। इसके पूर्व व्यवस्था को लेकर कर कई मैथिली प्राध्यापक आपस में भिड़ गये जिसे अकादमी के संयोजक डा. विदित ने शांत कराया।