"तेज बारिश में भींगा बदन है मेरा, ताप सूरज का मिलता नहीं, क्या करें ? जब लगी चोट गहरी तो दिल ने कहा वो प्यार का फूल खिलता नहीं क्या करें ? बंद दरवाजे सारे खुले मन के अबरंग फागुन का घुलता नहीं क्या करें?...."
यातनाएं झेलनेवाला
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रात
पिरहाना मछलियों-सी कुतरती रही तुम्हारी यादें
और दिन भर बदनाम कुर्सियों को सुनाता रहा मैं मुक्ति-गीत
एक गिटार ने मुझे जीने का गुर सिखाया
एक आत्मा जो...