
तीसरी कसम में पूर्णिया के गुलाबबाग मेले की यादें जिन लोगों ने फिल्म देखी होगी, उनकी स्मृति में जरूर बनी होंगी। आंचलिक उपन्यासकार फणीश्र्वर नाथ रेणु की कृति पर बनी इस फिल्म में इसका फिल्मांकन है। गुलाबबाग मेले का उत्स अब 100 साल पूरा कर चुका है। कभी पीसी लाल ने इसकी शुरुआत पूर्णिया सिटी में की थी। मेले का प्रचार-प्रसार इतना अधिक हुआ कि भीड़ काफी बढ़ने लगी और जगह कम पड़ने लगी। इसके बाद इसे गुलाबबाग में लगाया जाने लगा। प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह में लगने वाले इस मेले में विभिन्न प्रजाति के पशु-पक्षी की खरीद-बिक्री होती थी। लेकिन अब यह क्रम थोड़ा कमजोर हुआ है। इस मेले में नौटंकी कंपनियां, थियेटर, जादू के खेल का हर साल जादू छाया रहता था। बिहार ही नहीं, नेपाल व पश्चिम बंगाल के लोग भी एक माह तक लगने वाले इस जमघट का आनंद उठाने यहां पहुंचते थे। सोनपुर मेले की बराबरी का यह उत्सव अब पूर्णिया पूर्व प्रखंड प्रशासन की पहल पर हाल तक आयोजित होता रहा है। लोगों को उम्मीद है कि यह और भी सुविधासंपन्न होकर संवर्द्धित होगा। बिहार में जिस प्रकार पर्यटकों की संख्या में वृद्धि हो रही है, उससे गुलाबबाग के लोगों का भी हौसला बढ़ा है और कोशिश जारी है कि यह मेला अपने पुराने गौरव को फिर से हासिल करे।
(दैनिक जागरण,मुजफ्फरपुर संस्करण,16.3.2010)
प्रस्तुतकर्ता का ब्लॉग: www.krraman.blogspot.com