समकालीन लेखन मे कोसी क्षेत्र के रचनात्मक हस्तक्षेप का जीवंत दस्तावेज है ‘संवदिया’ का ताजा अंक। इस महत्वपूर्ण अंक में इस क्षेत्र के प्रतिनिधि समकालीन रचनाकारों का अद्भुत समागम दिखता है । कवियों - कथाकारो सहित कोसी क्षेत्र के प्रसिद्ध आलोचकों के विचार व टिप्पणियाँ भी इस अंक को दीर्घायु बनाने का कार्य कर रही है। राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने वाले कवियों में कल्लोल चक्रवर्ती, कृष्णमोहन झा सहित कई कवियों ने इस अंक में अपनी उपस्थिति दर्ज करायी है, क्षेत्र के कथाकारो में संजीव ठाकुर एवं संजय कुमार सिंह सदृश्य कथाकारों की उपस्थिति से यह अंक महत्वपूर्ण हो जाता है और तो और इस अंक की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह भी है कि कथा और काव्य विधा के प्रसिद्ध समीक्षक यथा डा. ज्योतिष जोशी, डा. देवशंकर नवीन, सुरेन्द्र स्निग्ध एवं चर्चित पत्रिका ‘दस्तावेज’ के संपादक डा. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी द्वारा इन रचनाकारों पर उम्मीदों से लवरेज विचार ने कोसी की रचनाधर्मिता को सार्थक कर दिया है। संवदिया के इस अंक से राष्ट्रीय क्षितिज पर कोसी की जबर्दस्त धमक सुनाई पड.ती है। अंक, संपादक देवेन्द्र कुमार देवेश (मोबाइल-09868566420) की कवायद का सार्थक फल है। प्रस्तुत है इस अंक में प्रकाशित कल्लोल चक्रवर्ती की कविता ‘चेहरे’ की कुछ पंक्तियाँ-
....दुनिया के सारे तानाशाह इस वक्त व्यस्त हैं
वे मंदिरों और मस्जिदों में खुदा के पास बैठे हैं
वे मोचियों के पास अपने जूते
सिलाने के इंतजार में खडे हैं
वे बच्चों और बूढ़ों को सड़क पार करा रहे हैं
वे सभागार में व्याख्यान दे रहे हैं
वे हमारे बिलकुल पास खड़े हैं।
यह कितना भयानक सत्य है
कि सारे के सारे हत्यारे
हमारे आसपास खड़े हैं
और हमसे हमारी ही भाषा में बातें कर रहे हैं।