साहित्य अकादेमी द्वारा आयोजित ‘मिथिलाक साहित्यिक-सांस्कृतिक उत्कर्षमे संत कवि लोकिनक अवदान’ विषय पर आयोजित समारोह के दूसरे दिन 11 जून, शनिवार को चतुर्थ सत्र आरंभ हुआ। इस सत्र का विषय था - ‘महर्षि मेंहीं दासक अलौकिक सामाजिक चेतना’। गोष्ठी में आलेख पाठ डा. अरविन्द मिश्र नीरज एवं डा. राजा राम प्रसाद ने किया। दोनो विद्वानों ने अपने आलेख में महर्षि जी के व्यक्तित्व एवं सत्संग कार्य पर भरपूर प्रकाश डाला। गोष्ठी की अध्यक्षता डा. नित्यानंद दास ने की। वे स्वंय विषयवस्तु में निष्णात हैं तथा अकादेमी द्वारा पुरस्कृत हैं। वक्ताओं ने कहा कि महर्षि मेही दास ने संतमत की जटिलता को सहज एवं सुलभ बनाया, इतना सहज कि अनुसूचित जाति एवं पिछड़ी जाति से लेकर उच्च वर्ण तक के लोग इनके अनुयायी हैं। इन्होंने साधना को सहज ही नहीं किया अपितु लोकोन्मुखी भी बनाया। साहित्य अकादमी के संयोजक डा. विद्यानाथ झा ‘विदित’ ने कहा कि समस्त मिथिला के 25 प्रतिशत जनमानस महर्षि जी के अनुयायी हैं तथा 25 प्रतिशत कबीरदास के। महर्षि जी ने संतमत पर अधिक जोर दिया। उनके विचार से सतसंग से परस्पर भाई-चारा, संगठन, लोकशक्ति एवं संघशक्ति का संवर्द्धन होता है।
कार्यक्रम का पंचम सत्र - ‘मिथिलाक सांस्कृतिक उत्कर्ष आ मंडन मिश्र’ पर परिचर्चा आरम्भ हुई इसकी अध्यक्षता कोसी अंचल के वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरिशंकर श्रीवास्तव ‘शलभ’ ने की तथा डा. देवशंकर नवीन एवं प्रो. कुलानंद झा ने आलेख पाठ किए। डा. नवीन ने अपने आलेख में - माधवाचार्य के ‘शांकर दिग्विजय’ को असंवद्ध एवं फर्जी करार देते हुए यह सिद्ध करने की चेष्टा की कि मंडन मिश्र और शंकराचार्य में शास्त्रार्थ हुआ ही नहीं था। इस संबन्ध में उन्होंने पंडित सहदेव झा के ग्रंथ ‘मंडन मिश्र का अद्वैत दर्शन’ तथा इस ग्रंथ में डा. तारानंद वियोगी की सारगर्भित भूमिका को संदर्भित करते हुए अपने विचार की पुष्टि की। प्रो. कुलानंद झा ने अद्वैत दर्शन पर अपने विचार रखे। अध्यक्ष श्री शलभ ने कहा कि - प्रसिद्ध वेदांत विचारक मंडन मिश्र का अद्वैत दर्शन एक नवीन आयाम प्रस्तुत करता है। वेदांत की गृहस्थ व्याख्या सर्वप्रथम मंडन मिश्र ने की थी। उनका चिंतन वर्ग एवं जाति विहीन सामाजिक वैज्ञानिक परिकल्पना है जो ब्रह्म के अद्वैतवाद पर आधारित है।
समापन सत्र की अध्यक्षता एम.एल.टी कालेज सहरसा के प्राचार्य डा. राजीव सिन्हा ने की इन्होंने कार्यक्रम पदाधिकारी श्री पोन्नुदुरै तथा संयोजक डा. विद्यानाथ झा विदित को महाविधालय की ओर से अंगवस्त्रम देकर सम्मानित किया। श्री अरविन्द ठाकुर एवं श्री पंचानन मिश्र ने मिथिला के सांस्कृतिक उत्कर्ष विषय पर अपने आलेख का पाठ किया तथा पर्यवेक्षीय रपट श्री हरिशंकर श्रीवास्तव ‘शलभ’ एवं डा. महेन्द्र ने प्रस्तुत किया। स्नात्कोत्तर केन्द्र के पूर्व प्राचार्य डा. जवाहर झा ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
इस ऐतिहासिक समारोह के अंत में मैथिली कवि-सम्मेलन का आयोजन हुआ जिसकी अध्यक्षता डा. विद्यानाथ झा विदित एवं मंच संचालन अजित कुमार आजाद ने किया। कवियों में श्री अमलेन्दु पाठक, प्रो कुमार ज्योतिवर्द्धन, निर्भय, विद्याधर मिश्र, जनक, हरिवंश झा, स्वाति शाकम्भरी, मोहन यादव आदि ने अपनी धारदार कविताओं के माध्यम से कार्यक्रम को यादगार बना दिया। सहरसा में साहित्य अकादेमी का यह पहला आयोजन था जिसे रचनाकार एवं बुद्धिजीवियों ने जम कर सराहा।