संवदिया का ताजा अंक पत्रिका से जुड़े रचनाकारों का सार्थक इंतसाब और अदम्य जिजीविषा का संयुक्त मिशन है, जिसने कोसी प्रांगण में फैले विपुल साहित्यिक संपदा को तकरीम के साथ उड़ान भरने का मौका दिया। संपादक अनिता पंडित बकौल मार्केज ‘एक प्रसिद्ध लेखक को, प्रसिद्धि से लगातार खुद की रक्षा करनी पड़ती है’। अंदर दबी संपादन-कला-कौशलता के साथ, संपादक को पाठकों के हित में और अधिक मुखर होना पड़ा। इंटरनेट पर संवदिया का अपना ब्लाग और अभी-अभी साहित्य की चर्चित पत्रिका ‘परिकथा’ (जनवरी-फरवरी, 11) में इसकी चर्चा से स्पष्ट होता है कि छोटे जगह से प्रकाशित संवदिया का फलक कितना विशाल है। संवदिया के ताजे अंक में डा. वरुण कुमार तिवारी का आलेख- नागार्जुन के काव्य में मिथिला का लोकजीवन, कर्नल अजित दत्त का- रेणु की कहानियों पर फिल्में तो पठनीय है ही, साथ में फनीश्वरनाथ रेणु के पत्र मधुकर गंगाधर के नाम के अन्तर्गत रेणु जी के चार दुर्लभ पत्र अक्षरशः प्रकाशित हैं। कहानियों में अरुण अभिषेक, रहबान अली राकेश, इंदिरा डांगी और प्रभात दुबे की कहानियाँ उल्लेखनीय हैं । अंक में गद्य के साथ कविताओं की युगलबंदी ने संवदिया को और अधिक रोचक बना दिया है। श्यामल , धर्मदेव तिवारी, लीलारानी शबनम आदि की कविताएँ भी अंक को सार्थक बनाने से नहीं चूकती।
संपादक: अनीता पंडित
संवदिया प्रकाशन, जयप्रकाश नगर, वार्ड नं.- 7
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