gratis homepage uhr website clocks
कोसी प्रमंडल (बिहार) से प्रकाशित इस प्रथम दैनिक ई. अखबार में आपका स्वागत है,भारत एवं विश्व भर में फैले यहाँ के तमाम लोगों के लिए यहाँ की सूचना का एक सशक्त माध्यम हम बनें, यही प्रयास है हमारा, आपका सहयोग आपेक्षित है... - सम्पादक

Scrolling Text

Your pictures and fotos in a slideshow on MySpace, eBay, Facebook or your website!view all pictures of this slideshow

Related Posts with Thumbnails

शुक्रवार

------तुम ही सो गये दास्ताँ कहते कहते। गज़लकार वसन्त नहीं रहे....


गीत एवं गज़ल के चर्चित हस्ताक्षर - वसन्त (मुरलीगंज) इस दुनिया में अब  नहीं रहे- यह कहते ही जुबान लड़खड़ा जाती है....अपने गज़ल और गीतों से मंच पर छा जाने वाले वसंत इस तरह अचानक लुप्त हो जायेगा, अविश्वसनीय लगता है। कोसी क्षेत्र की पहचान के रूप में वसन्त ने बिहार एवं अन्य प्रान्तो में अपने फन से बेहद शोहरत कमाया, देश की चर्वित पत्रिकाओं ने उनके गीत और गज़ल को ससम्मान प्रकाशित किया। कोसी क्षेत्र से प्रकाशित पहला साप्ताहिक ‘कोसी टाइम्स’ का उन्होंने प्रकाशन एवं संपादन किया।


वरिष्ठ कवि व गीतकार सत्यनारायण (पटना) का मानना है कि - वसन्त की गज़लों में अहसास की तपिश है, एक मासूम-सा मिज़ाज है और वे धड़कते  भी हैं.......।  उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए वरिष्ठ साहित्यकार तथा कौशिकी क्षेत्र हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्षय श्री हरिशंकर श्रीवास्तव ‘शलभ’ ने कहा कि वसन्त नवगीत से गज़ल के क्षेत्र में आये थे, यही कारण है कि नवगीत की रागचेतना और उसकी विम्बधर्मिता समग्र रूप में इनकी गज़लों में दिखती है। डा. भूपेन्द्र’ मधेपुरी का मानना है कि वसन्त के गजलों में नवगीत के मुहावरे, उसकी शब्दावली और उनकी आन्तरिक बुनावट बहुत ही आकर्षक है कवि धीर प्रशांत का मानना हे कि बसन्त की गज़लों में उर्जा’ है और अंतरंगता । चर्चित कवि शहंशाह आलम ने वसन्त को कोसी का खिला हुआ एक अलौकिक पुष्प कहा। गजलकार अनिरूद्ध सिन्हा  एव अरविन्द श्रीवास्तव ने अपने अश्रुपूरित नयनों से उन्हें नमन किया।   उनकी चर्चित कृति ‘एक गज़ल बनजारन औरकुर्सियों का व्याकरण’ एक धरोहर है हमारे बीच।
पिछले दिनों दैनिक ‘हिन्दुस्तान’ में प्रकाशित उनकी एक गज़ल को देखें -

लगने लगा है बिस्तर बाहर दलान में 
बूढ़े के लिए अब नहीं कमरा मकान में।

प्रस्तुत है उनकी पुस्तक ‘एक गज़ल बंजारन’ की पहली गज़ल-

पहले पन्ने में राजा का हाथ खून से सना लिखा है
मनमानी की इस किताब में आगे दुख दुगुना लिखा है

इससे भी पहले अंधों ने अपनों को बांटी रेवड़ियां
भैया तेरी मेरी किस्मत में केवल झुनझुना लिखा है

अपनी कुदरत को बचपन से फाकामस्ती की आदत है
कई दिनों से चौके  की पेशानी पर बस चना लिखा है

इस सियासती बाजीगर को शायद यह मालूम नहीं कि
टूट गया शहजोर फैलकर जब भी हद से तना लिखा है

ज़र्द धूप का टुकड़ा आकर बोल गया कल पत्तों से यूं
चन्द रोज है और कुहासा इसको होना फना लिखा है

एक रोज नेकी ने सोचा मिलें जरा फिर इन्सानों से
देखा हर धर के दरवाजे अन्दर आना मना लिखा है

पत्थर फेंक रहे लोगों का सुनते हैं तू सरपरस्त है
तेरा धर तो खास तौर से शीशे का बना लिखा है । 

‘जनशब्द’ एवं ‘कोसी खबर’ परिवार कवि वसन्त की निम्न पंक्तियों को स्मरण कर उन्हें श्रद्धा निवेदित करता है -
थे नहीं उतने बुरे दिल के वसन्त जी
उठी जब मैयत कहा सबने वसन्त जी
क्या गये जो रूठ कर हमसे वसन्त जी
फिर नहीं हमको दिये रब ने वसन्त जी

तस्वीर में (दायें से बाये) काव्यपाठ करते वसन्त, अरविन्द श्रीवास्तव, हरिशंकर श्रीवास्तव ‘शलभ’, आदित्य, डा. मनमोहन सिंह (पंजाबी शायर एवं आरक्षी अधीक्षक ) .डा भूपेन्द्र नारायण यादव ‘मधेपुरी’ एवं दशरथ सिंह।